
तथागत – सपनों की उड़ान
छह अगस्त की सुबह का सूरज,
थोड़ा और सुनहरा था उस दिन,
जब नन्हे पांव लिए धरती पर आए
तथागत—दादा का आशीष, एक पावन चिन्ह।
इंदिरापुरम के विद्यालय में वह
अब बारहवीं की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है,
किताबों से आगे, सपनों की राह में
वह भविष्य का उद्यमी बन रहा है।
एकल संतान, पर अकेला नहीं,
माँ-पापा की दुनिया की रौशनी है,
जिसे देखा है हर दिन नया सोचते,
हर लक्ष्य पर खुद की मुहर लगाते।
कोई खिलौना उसे बाँध नहीं पाया,
क्योंकि वह तो विचारों से खेलता रहा,
दूसरे बच्चे जहाँ उत्तर खोजते हैं,
तथागत वहाँ सवालों में उलझा रहा।
दादा ने दिया था उसका नाम,
एक गूंज जो शांति और बोध में बसी है,
वह नाम अब कर्म से सार्थक होगा,
जब वह दुनिया में रोशनी की मिसाल बनेगा।
आज जब वह पंद्रह से सोलह की ओर बढ़ा है,
उसकी आंखों में आत्मविश्वास की ज्योति है,
ना सिर्फ परीक्षा में अंक लाने की जिद्द,
बल्कि दुनिया बदलने की सोच प्रबल है।
तथागत — तू सिर्फ एक नाम नहीं,
तू एक यात्रा है, विचार की चिंगारी।
ज्ञान, संस्कार और नवाचार का प्रकाश
तेरे भीतर जलता है — शांत, पर उजियारी।
-गौतम झा