
सुमन के दर्शन
समृतियों के भवँर को माथे के शिकन में कैद कर लिया,
उठती टीस को मुस्कुराहट में समेट कर श्रेष्ठ दिया।
सीप में मोती की तरह, स्पर्श के अनुभूति को सहेज लिया,
संवेदनाओं के सागर को, पारस बना के परहेज कर लिया।
माना मूल्य नहीं है, सुखद छन का, उसके अंतर्मन में,
फिर क्यों ये व्याप्त है, मेरे अंतःकरण के संस्करण में।
तुम कमल हो, मेरे अवचेतन मन के तल पर,
सुगंध बन मैं फिरूँ, अपने सुमन के दर्शन पर।
-गौतम झा
Sanjiv Thakur
11 months agoFull of Romance. ???? keep writing
Sanjiv Thakur
11 months agoFull of Romance. ???? keep writing
Kamlesh Kumar
4 months agoये तो जबर्दश्त है!
Kamlesh Kumar
4 months agoये तो जबर्दश्त है!