
नीलकंठ
अमृत-नील पंख फैलाए, नभ में करता गान,
दशहरे पर शुभ बनाता, जीवन का हर अरमान।
शिव का दूत, शांति का दर्पण, पावन इसकी छवि,
दृष्टि पड़े तो दूर हो जाए, हर विपदा की विकट घड़ी।
राम विजय का संदेशा लाए, धर्म का रखवाला,
आशा का दीप जलाता यह, हर हृदय में उजियाला।
पाप-ताप सब मिट जाते हैं, सुख-समृद्धि लाता,
नीलकंठ का पुण्य-दर्शन, जीवन को संवार जाता।
सुबह की रौशनी में इसका नयन-रमणीय रूप,
सृष्टि के हर कोने में बिखरे, अद्भुत ब्रह्माण्ड स्वरूप।
कोयल की मधुर तान सुन, इसकी महिमा गाए,
वनों में गुंजे अमृतधारा, सब जीव नमन हो जाए।
धैर्य और साहस का प्रतीक, सच्चाई का संदेश लाए,
जो देखे इसे श्रद्धा से, हर संकट से उबार पाए।
नीलकंठ का यह दर्शन, कर दे हृदय को निर्मल,
भक्ति, प्रेम और आनंद से, भर दे जीवन का हर पल।
पर्वतों की ऊँचाई से गूँजती इसकी अमृत झंकार,
नदी और नालों में बहे इसकी महिमा का प्रचार।
पक्षियों का समूह इसमें डूबे, गीत और राग मिलाए,
सृष्टि का हर जीव इसका पुण्य-दर्शन पाने को आए।
नीलकंठ की छवि में बसी, आस्था और श्रद्धा की शक्ति,
जो इसे देखे निष्ठा से, पाए जीवन में सुख-समृद्धि।
त्योहारों पर इसका दर्शन विशेष, दशहरा या शिवरात्रि में,
हर घर और हर मन में लाए, प्रेम, भक्ति और शक्ति की ज्योति।
-गौतम झा