जय महाकाल
ब्रह्माण्ड जिसके नेत्रों में
भ्रकुटियों में काल हो
देवों के तुम देव हो
तुम्हीं तो महाकाल हो…
हलाहल जिसके कण्ठ में
त्रिशूल जिसके हाथ हो
ललाट पर जब चंद्र हो
तुम्हीं तो कैलाशनाथ हो…
गंगा जिसकी जटाओं में
वासुकी जिसके साथ हो
नंदी पर जो सवार हो
तुम्हीं तो पशुपतिनाथ हो…
निवास जिसका श्मशान में
भस्म जिसका श्रृंगार हो
डमरू की डमन्नीनाद हो
तुम्ही तो नटराज हो…
बसे हो सबके मन में
तुम वही ओमकार हो
भोले हो विक्राल हो
तुम्हीं तो अंतकाल हो…
Dr.Barun Kumar Mishra
18 days agoअत्यंत समसामयिक रचना
Praveen Kumar Jha
14 days agoविलक्षण 👌