अनूठी खामोशी
तुम्हारी खामोशी अनूठी है,
जैसे पोटली में कल्पना छुपी हो
जैसे निशा और प्रभात के मध्य की बेला की अनुभूति हो
जैसे अधरों पर सिहरन की अल्प सम्प्रेषण हो।
जैसे अबोध आहट से सशंकित मन हो,
जैसे चंदन में लिपटा सर्प का अभिनंदन हो।
जैसे भोर से पहले सूर्यमुखी का आतुरपन हो,
जैसे पर्याप्त बैभव का अज्ञात छल हो
आपकी मूक दशा,
उपयुक्त और उत्कृष्ट हो चला हो
लोचन के संयुक्त बिमोचन से,
संयुक्ताक्षर शिल्प हो गया हो।
सविनय निवेदन की शुभ आकृति,
मन-मस्तिष्क में शबनम सा ठहर गया हो।
- गौतम झा