मृत्यु का भ्रम
मृत्यु का अगर डर नहीं होता,
पाप-पुण्य का भय नहीं होता।
काला साया छुपा है गहरी काली रात में,
जीवन रेखा मिटा देती है बात-बात में।
जीवन दुःखों की अंतहीन एक माला है,
झट से टूट जाए, मृत्यु ऐसी भोली हाला है।
मृत्यु अंत है या आरंभ है,
संसार में फैला एक भ्रम है।
सुख-दुख से भरी, जीवन एक नदी है,
इससे भी दुखद, ऊपर एक वैतरणी है।
मृत्यु का ज्ञान पंडितों में आम है,
कर्मकांड से इसका निदान है।
लौटकर तो कोई आता नहीं,
घबराने से क्या कोई जाता नहीं?
समय ही शायद दंड है,
मृत्यु तो एक पाखंड है।
गौतम झा