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वंदना
वर्णों के आदिपति प्रभु,
शब्दों के तू विधाता,
रस, छंद और मधुर लयों में,
तेरा ही स्वर गाता।
हे ज्ञानगणपति विनायक,
तेरे बिना न आरम्भ,
श्रद्धा-विश्वास का स्रोत तू,
सिद्धि का है परमारम्भ।
गुरु के चरणों में निहित,
सारे वेदों का सार,
जिनकी कृपा बिना न खुलता,
ज्ञान का सत्य-द्वार।
मां सरस्वती, वाणी तेरी,
चाँद सा शीतल नूर,
तेरे बिना सूना जग सारा,
तेरे ही प्रकाश से भरपूर।
सीताराम के पुण्यगान में,
लीन हनुमत वीर,
कवि-हृदय जिनसे पाते बल,
भक्ति बने गंभीर।
वंदन है उन सबका,
जो जीवन पथ आलोकित करें,
श्रद्धा-भक्ति के आधार,
हृदय-संगीत प्रकाशित करें।
-गौतम झा