
तुम और हम
हम सीखा देंगे चलो राह वही,
राह तो राह है चलना भी तुम्हे होगा सही !
अनसुने रह गए हैं कितने अफसाने यहां,
हम सुनाएंगे फ़साने तमाम जो है अनकही !
दिल के अरमानो को लगे पंख तेरे आने से,
अबके जज़्बात के आलम में हवा ऐसी बही !
कुछ न कुछ तो सबब है तुमसे मिल जाने का,
पर क्या जिसने मिलवाया बस जाने वही !
मिल गया हो जैसे एक मुसाफिर को मुकाम,
तुमसे दामन में मेरी खुशियां हीं खुशियां रही !
-कवि कुमार 'प्रचंड'
Abhinav Anand
1 month agoKya khoob likha hai kavi “Prachand” ji ne
Kanika Kulshreshta
1 month agoBahut sundar kavita.
Shruti Mahajan
1 month agoSuperb