
श्री रामचन्द्र
अंग-अंग की छवि अनुपम, कोटि कामदेवों का गर्व हर लेती,
नील-नीरद सम कान्ति मनोहर, पीताम्बर की शोभा संग रहती॥
मणि-मुकुट शीश पर जगमगाए, कुण्डल कानन में झूल रहे,
मुख पर तेज अपार विराजे, भाल तिलक मानो चन्द्र निकले॥
आजानु-बाहु, वक्षस्थल विशाल, धनुष-बाण से दीप्त प्रभु रूप,
खल-दल-गंजन महाबली वीर, सुर-असुर निहारें तुमको अनूप॥
दीन-बन्धु दयालु कृपाल, रघुकुल-रत्न, आनंद सागर,
दशरथ-नंदन, कौशल्यानन्दन, चरण-धूलि से जग हुआ पावन॥
अहल्या का शाप हर लिया, शबरी के बेर स्नेह से खाए,
विभीषण को राज्य दिया, शत्रु को भी करुणा से अपनाए॥
मुनि-जन के मानस विहारक, शंकर के प्रिय आराध्य,
काम, क्रोध, मोह-विजयकारी, भक्त-जन हित के साध्य॥
वेद-पुराण तुम्हारी महिमा गाते, दया तुम्हारी अपार,
करुणा-निधान सुजान प्रभु, लीला तुम्हारी जग के आधार॥
-गौतम झा