
समानांतर दुनिया
सोशल मीडिया की चौखट पर,
हर चेहरा मुस्कान में लिपटा है,
जहाँ शुभेक्षा उड़ती हैं बगैर मौसम के,
और अपनापन बस इमोजी में सिमटा है।
यहाँ हर शब्द चमकता है, पर अर्थ नहीं,
हर संदेश मिलता तो है, पर छूता नहीं।
जिससे कभी मुलाकात नहीं,
वही ‘ऑनलाइन’ सबसे करीब लगता है कहीं।
यह दुनिया, हकीकत की परछाई है,
जहाँ स्नेह भी नेटवर्क पर निर्भर पाई है।
यहाँ "आप कैसे हैं?" में शुद्धता कम,
औपचारिकता की सजावट ज़्यादा समाई है।
जो लोग सच में पास हैं,
वे ‘टाइपिंग…’ में खो गए हैं कहीं।
और जो कभी पास नहीं थे,
वे नोटिफिकेशन में बस गए हैं यहीं।
दूरी ने यहाँ नज़दीकियाँ पहन ली हैं,
और नज़दीकियों ने दूरी का वस्त्र।
यह दुनिया लुभाती है,
पर आत्मा कहती है — यह बस एक भ्रम है,
सुगंध बिना पुष्प।
-गौतम झा