
मैं ही शिव हूँ
मैं असीम आकाश की गहराई हूँ,
मैं हर श्वास की परछाईं हूँ।
ना जन्म, ना मृत्यु का बंधन मुझे,
मैं शाश्वत चेतना की सच्चाई हूँ।
मैं दीप की लौ, मैं अग्नि की ज्वाला,
मैं राग, विराग और मौन निराला।
संसार जहाँ मिटता है, वहीं खड़ा,
मैं अनादि, अनंत, मैं ही उजाला।
न मैं शरीर, न इन्द्रियों का दास,
न ही हूँ बंधन, न कोई त्रास।
जो सत्य के पार खड़ा अचल,
वह मैं स्वयं, अमृत का प्याला।
मैं नश्वर देह से बंधा नहीं,
मैं कर्म, कर्मफल से जुड़ा नहीं।
अखंड स्वरूप, अचल सत्य मैं,
मैं शिव हूँ, शिव हूँ, दूसरा नहीं।
-गौतम झा