सावन का अंतिम सोमवार
कपाल-विभूषित भस्म-धारी,
त्रिनेत्र-ज्वाला, नाद-विहारी।
जब कांवर ले भक्त बढ़े,
मन हो जाए शिव-शिव गंगे॥
बेल-पत्र जब श्रद्धा बाँधे,
घंटनाद गगन को छू जाए।
मंत्रों से लहराए चेतन,
जटा-जूट से जाग्रत प्रांगण॥
कंठ में विष, करुणा-विभूषण,
डमरु में गूँजे ब्रह्म-संवेदन।
तांडव की लय से उठे कंपन,
हर अंगन में जगे आराधन॥
चंद्रशेखर, काल-विनाशक,
अंधकार में तेज-प्रकाशक।
सावन के इस अंतिम सोम में,
मन व्रती हो शिव-उपासक॥
त्रिशूल उठे, दिशाएँ काँपे,
जग बोले, “हर-हर महादेव।”
ब्रह्मांड थमे, नर्तन बोले,
भक्त हृदय में जगे महादेव॥
बिन कहे नयन, भाव बहा,
मन की गहराई में शिव उतरा।
अंतिम सोम की संध्या में,
श्रद्धा दीपक-सा जल उठा॥
हे नीलकंठ, दिगंबर नाथ,
तेरे चरणों में ही प्राणपथ।
न माँगूँ स्वर्ण, न देवलोक,
बस नाम तेरा हो हर श्वास॥
श्रावण की इस सोम-वेला में,
मन बने नाद, देह तपोमय।
हर तांडव तुझमें थमे प्रभो,
हर साँस शिवमय, हर क्षण अमय॥
- गौतम झा