सहकर्मी रूपवती

सहकर्मी रूपवती

सहकर्मी रूपवती

वह दफ़्तर की रोशनी में नहीं,
जैसे चाँद की शीतल धारा उतर आती हो।
काग़ज़ों और फ़ाइलों के बीच
उसकी मुस्कान कोई कविता लिख जाती हो।

न काजल की ज़रूरत, न गहनों की चाह,
उसके नेत्र स्वयं दीपक हैं,
और उसकी चाल—
मानो समय भी ठहर कर निहारता है।

बायरन की पंक्तियों-सी वह गंभीर,
पर हृदय में कोमलता का सागर।
बातें उसकी—संगीत की झंकार,
और मौन उसका—
एक रहस्य, जिसे जानना असम्भव।

सहकर्मी है, पर जैसे प्रेरणा हो,
काम के बीच कविता की धुन हो।
सुंदरता उसकी शोर से परे,
सादगी में छिपा हुआ एक अनंत आकर्षण।

-गौतम झा

 

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2 Comments

  •  
    Gunja
    21 days ago

    👌✍️

  •  
    Gunja
    21 days ago

    👌✍️