राष्ट्रकवि दिनकर : शब्दों का सूर्य

राष्ट्रकवि दिनकर : शब्दों का सूर्य

राष्ट्रकवि दिनकर

कलम से निकली ज्वाला थी,
अन्याय पर जो ढाल बनी,
स्वाधीनता के रण में जब,
जनमन की पहली पुकार बनी।

वीर रस की वह धारा थे,
कौरव-पांडव से संवाद,
कर्ण का गौरव, धर्म का द्वंद्व,
शब्दों में गूँजा हर संवाद।

नवभारत की सुबह बुलाने,
उठे थे जो हुंकार बने,
कुरुक्षेत्र से रश्मिरथी तक,
इतिहास के जयकार बने।

श्रृंगार में भी खोज लिया,
मानव का मधुर विवेक,
उर्वशी में बहता सौंदर्य,
नीति में जलता संकल्प नेक।

दिनकर केवल कवि थे,
युगद्रष्टा, चिंतक, विचार,
उनकी वाणी में ध्वनित हुआ,
भारत का उज्ज्वल आकार।

आज भी जब मन टूटता है,
असमान न्याय से घिर जाता,
दिनकर की पंक्तियाँ गूँज उठें,
और संघर्ष नया जन्म पाता।

 -गौतम झा

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