
राम की महिमा
पिता-वचन निभाने को, चौदह वर्ष वन में रहे तपस्वी,
जानकी संग, लक्ष्मण स्नेह लिए, धर्म पथ किया ओजस्वी॥
मारीच का छल मिटाया, रावण का अभिमान हराया,
असुरों का साम्राज्य मिटा, सेतु से पत्थर तैराया॥
रघुकुल की रीति अटल, प्राण भले जाएँ वचन न जाए,
ऐसे सत्य, ऐसे धैर्यवान, युग-युग तक गाथा गाई जाए॥
वेदों ने कहा परमब्रह्म, योगियों ने आत्माराम जाना,
कण-कण में चेतन, सृष्टि-मन में तुम्हारा ही वास समाना॥
हे प्रभु! हृदय-कमल में वास करो, काम-क्रोध-मद को दबाओ,
क्षणभंगुर जग-माया से मेरे जीवन को मुक्ति दिलाओ॥
गौतम की यह विनय सुनो, भक्ति की अविरल धारा दो,
सहज-सांवरी सुंदर मूरत मन में बसाकर प्रेम का वरदान दो॥
तुम शिव के भी प्रिय, गौरी के पूज्य, हर पल तुम्हारा नाम जपें,
मूल-बाण अंग धारिणी सीता सहित, कृपा से संकट सब टलें॥
तुम्हारी दया से ही जीवन-नैया पार लगे, गूँजे गुणगान,
हे रघुनंदन! मोह-बंधन से खींच मन को अपने चरणों में दो स्थान॥
-गौतम झा