रक्षाबंधन: श्रावण से वैकुण्ठ तक प्रेम का धागा

रक्षाबंधन: श्रावण से वैकुण्ठ तक प्रेम का धागा

रक्षाबंधन

श्रावण पूर्णिमा शुभ दिन है,
रक्षा-सूत्र बंधन का चिन्ह है।
वेदों में इसकी पहचान,
ऋषि-मंत्र में छिपा प्रमाण।

इन्द्र जब रण में हारे,
शची देवी तब पुकारे।
ऋषि वशिष्ठ ने मन्त्र सुनाया,
सूत्र बाँधा वीर सजाया।

वामन रूप धरि श्रीहरि आये,
बलि को अपना व्रत सुनाये।
लक्ष्मी ले आई रक्षा डोरी,
धर्म-विजय कर वैकुण्ठ पधारे।

कृष्ण-द्रौपदी की वह बात,
सूत्र बना रक्षक प्रभात।
चीर बढ़ा जब लाज लजाई,
श्रीकृष्ण ने रक्षा निभाई।

कर्णावती ने रेशम बाँधा,
हुमायूं ने धर्म निभाया।
राजनीति में प्रेम समाया,
रक्षा-सूत्र से मान बढ़ाया।

गांधीजी ने हरिजन को,
भाई कहा शोषित जन को।
एक धागा जोड़ सके जब,
हृदय स्नेह से हो अभिषेक तब।

मॉडर्न भारत में भी प्रीत,
राखी लाती नव संगीत।
ईमेल, पोस्ट या संदेशा,
रक्षा पहुँचे बिना अंदेशा।

बॉर्डर पर जब राखी जाए,
जवानों का मन मुस्काए।
धरा हो या अम्बर छाए,
रक्षा-सूत्र प्रेम लुटाए।

धर्म, जाति सब भूल चलो,
प्रेम-स्नेह से नाता पालो।
रक्षाबंधन पावन नाता,
हर युग में यह दीप जलाता।

-गौतम झा

 

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