
जब सृष्टि ने अपना प्रिय चुना
एक दिन इजाज़त मिली सबको
अपना प्रिय चुनने की,
सूरज ने रौशनी को अपनाया,
और अंधकार ने शांति को।
चाँद, तारों के संग हो लिया,
अपनी अपूर्णता में पूर्ण हुआ,
नदियाँ सागर से जा मिलीं,
और सीमाओं ने अर्थ पाया।
हवा, ख़ुशबू के पीछे भागी,
स्वतंत्रता में समर्पण ढूँढती रही,
बरखा ने बादल को गले लगाया,
क्षणभंगुरता में स्थायित्व पा लिया।
धरती ने मौन में सुना,
पेड़ों की जड़ों से संवाद किया,
सबने अपना सत्य पा लिया,
बस मनुष्य... अपने भीतर खोजता रह गया।
-गुंजा झा