नहाय-खाय का उजास 

नहाय-खाय का उजास 

नहाय-खाय

तालाबों में, नदियों में, सागर के जल में स्नान किया,
भक्ति ने हर बूंद को आज पुनः पावन मान लिया।
अंगना-अंगना गूंज उठे मंगल गीत पुराने,
छठ माता की आरती में गूँजे बिहारी दीवाने।

भोजन सादा, मन निर्मल, व्रत का यह आरंभ है,
हर थाली में भक्ति का उजला गंधर्व गान है।
अरवा चावल, कद्दू भात, तुलसी का संग सुहाना,
हर कौर में बसमाईका आशीष है पुराना।

संध्या में घाट सजेंगे, दीपक जलेंगे पथ पर,
आस्था के दीपक होंगे हर नदी के तट पर।
बच्चों की हंसी, औरतों का वह गीत सुरीला,
मानो खुद सूर्य देव उतर आएं धरती पर निराला

नहाय-खाय से शुरू हुआ, अब उपवास की धार बहे,
भक्ति की यह लहर हर हृदय में उजास कहे।
छठ सिर्फ पर्व है, यह जीवन का अनुशासन है,
जहाँ जल में झुकता तन, और मन में उठता समर्पण है।

 -गौतम झा

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