मर्यादा
मर्यादा का ठेका हमेशा औरतों के नाम!
सास डाँटे—बहू ज़रा धीरे हँसो,
मामा टोके—भांजी ज़रा ढंग से चलो,
अख़बार लिखे—“देश की इज़्ज़त नारी की लाज से जुड़ी है।”
वाह रे समाज!
मर्यादा की दुकानदारी खूब चल रही है।
पर ज़रा पूछो—
नेता जी का मुँह जब गालियों से लबालब भर जाता है,
क्या वह मर्यादा का मेला है?
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जब अश्लील चुटकुलों से सजता है,
तो क्या मर्यादा पिकनिक मनाने चली जाती है?
कितना आसान है कहना—
औरत मर्यादा में रहे तो लक्ष्मी है,
और अगर तोड़े तो कलंकिनी।
पर मर्द अगर सड़क पर शोर मचाए,
या संसद में मेज़ पर चढ़ जाए,
तो बहादुरी का तमगा उसे थमा दिया जाता है।
सच तो यह है—
मर्यादा न लहंगे की सिलाई है,
न पगड़ी का फंदा।
यह तो आचरण का आईना है,
जो स्त्री और पुरुष दोनों को
बराबरी से टटोलता है।
तो अगली बार कोई कहे—
“औरत मर्यादा में अच्छी लगती है,”
तो ज़रा मुस्कुराकर जवाब देना—
“भाई साहब, मर्द भी मर्यादा में और अच्छे लगते हैं।”
-गौतम झा