
माँ काली
वह काली है—
जिसकी हँसी में बिजली गरजती है,
जिसकी आँखों में महासागर उमड़ते हैं,
जिसके चरणों से काल भी काँपता है।
वह काली है—
गले में मुण्डमाला,
हाथों में खड्ग और ढाल,
रक्त से भीगी हुई जिह्वा,
और चेहरे पर प्रलय की आभा।
वह काली है—
जिसके केश आकाश को ढँक लेते हैं,
जिसके स्वर में भैरव की गर्जना है,
जो दैत्यों की छाती पर नृत्य करती है,
और भक्तों की आँखों में आँसू भर देती है।
वह काली है—
विनाश भी वही, करुणा भी वही,
भय भी वही, शरण भी वही,
अंधकार भी वही, उजाला भी वही,
संसार की जननी और प्रलय की नायिका।
हम नतमस्तक हैं—
उस महाकालिनी के आगे,
जिसकी कृपा से
मनुष्य पाप से मुक्त होता है,
और मृत्यु भी
उसके चरणों में मौन हो जाती है।
-गौतम झा