
कुकुर और मानव
प्रेम, करुणा, और दया पर आपत्ती,
सुमति की निन्द्रा पर जागे कुमति,
हो नर, पशु या कोई जीव बस रहे याद,
इह गति हो या ऊह गति होनी सबकी सदगति !
काट रहे इंसान इंसान को बेहिसाब,
इसकी बही-खाता का क्या हिसाब,
बेजुबानो पर लगाम कस दो वश में है तुम्हारे,
इंसानो का क्या करोगे सोचो जरा जवाब !
हम कोई हिमायती नहीं हैं ऐसी वारदातों का,
कोई पिटारा भी नहीं भरी शिकायतों का,
होनी को किसने टाला है बताये कोई,
कल मै भी हो सकता हूँ शिकार इनकी ज़हरीली दांतों का !
प्रेम, दया, परोपकार, क्षमा, हैं मानवता की निशानी,
यही बहे आँखों के रस्ते सबमे बनकर पानी,
हर हाल में इंसानियत रहे कायम विनती है सबसे,
दुःख-दर्द, सुख-चैन हर जीव की है कहानी !
-कवि कुमार 'प्रचंड'