
कुछ पता नहीं
आवाजें कब शोर बन गई पता नहीं,
खामोशी कब तनहाई बन गई पता नहीं।।
बेचैन सा रहता है दिल अपनो के बीच,
मुस्कुराहट कब सजा बन गई पता नहीं।।
रखा नहीं हिसाब ज़िन्दगी का कभी,
कर लिया वही जिसमें दिल लग गया।।
हौसले की कमी नहीं कुछ कर गुजरने की,
मंजिल कब छूट गई पता ही नहीं।।
यूं तो दोस्तों ने हमें अपना अज़ीज़ माना,
एक खूबसूरत गज़ल ने भी अपना जाना।।
सोचा था ज़िंदगी अब रंगीन होगी
कब बदतरीन हो गई पता ही नहीं।।
-अंकित
Gautam
1 year agoबहुत बढ़िया🤩
Gautam
1 year agoबहुत बढ़िया🤩