कभी-कभी - तुम और मैं
कभी तुम मेरे दरीचे से मुझे ढूंढों,
और फिर, जमाना तुझे मेरी कौतुहल में देखे।
कभी तुम मुझे अपने काजल के लकीरों में पाबन्द कर लो,
और फिर, जमाना मुझे तेरी पलकों का पहरेदार सा देखे।
कभी तुम मेरी बातों को अपना बना लो,
और फिर, ज़माना मुझे तुम्हारे अधरों पर अक्स सा देखे।
कभी तुम मेरा ख्वाब बन जाओ,
और फिर, जमाना मेरा खैर-ओ-मकदम देखे।
कभी तुम मेरा साथ दे दो,
और फिर, मेरे फिक्र में जमाना जलता देखो।
कभी तुम मुझे अपना बना लो,
और फिर, जमाना मुझे बदलता हुआ देखे।
कभी तुम मेरे साथ हार के देखो,
और फिर, जमाना मंज़िल को गुनहगार होता देखे।
कभी तुम मुझे छू के देखो,
और फिर, जमाना मेरी खूशबू में तेरी परछाई देखे।
कभी तुम मेरा हाल तो पूछो,
और फिर, जमानें में बवाल देखो।
कभी तुम मेरे फिक्र में आके देखो,
और फिर जमाने में अपना जिक्र देखो।
अगर कुछ नहीं तो मुझे छोड़ के देखो,
और फिर, जमाना तुझे मेरी आदत पर मजबूर होता देखे।
-गौतम झा