लोग कहते हैं वक़्त के साथ तो बदलना ज़रूरी है
दूसरों के सामने कमजोरियां छिपाना भी जरूरी है।।
नहीं कहता कोई दूसरों का सम्मान करो
ऐसे भी तो दो चार अरमान रखा करो ।।
कितने उठाते हैं राह में किसी गिरे हुए को,
जैसे राग मिल गया हो किसी सिरफ़िरे को।।
छूटती जा रही हमसे पीछे अब जिंदगी
अपने पैरों के निशान देखना जरूरी है ।।
कम हो गई ज़मीन अब आसमां पर नज़र है
भूख मिटती ही नहीं अब ऐसा ये कसर है।।
वो कहता है इंसानियत का दामन थामे रखो
जुल्म करो पर जज्बातों का तो मरहम रखो।।
अंकित