
राधा–श्याम के प्रेम और भक्ति का अमर राग
यमुना की तट पर चाँदनी मुस्काए,
जयदेव की वीणा में राधा-श्याम गाए।
मुरली की तान में विरह का नाद,
प्रेम में नहाए संसार का हर स्वाद।
वन की निस्तब्धता सुनती है गाथा,
कृष्ण की चपलता, राधा की व्यथा।
मिलन की इच्छा, बिछोह की वेदना,
भक्ति में ढलता है प्रेम का राग-रसना।
मान-उन्माद में राधा का हृदय,
श्याम की चपल दृष्टि जगाए नय-नय।
शृंगार बने साधना, विरह बने ध्यान,
मानव को दिखलाए ईश्वर का विधान।
ओ गीत गोविन्द, अनश्वर गान,
तू है भक्ति और प्रेम का प्रमाण।
तेरी ध्वनि में गूँजता है अनंत आयाम,
हर युग में जी उठते राधा-श्याम।
रस, प्रेम और भक्ति के अमृत से भरा,
गीत गोविन्द हमेशा हृदयों में उभरा।
राधा-श्याम के अद्भुत मिलन का यह राग,
सदा गाया जाए, अमर रहे यह अनुराग।
-गौतम झा