एक ही बात
दिन – रात एक ही बात,
रग – रग में है आपका उत्पात ।
क्षण – क्षण का प्रादुर्भाव,
अंतर्मन में है आपका अभाव ।
आपके ज्ञात के प्रतिकूल,
अपरम्पार है अनुकूल ।
सापेक्ष नही है परिपेक्ष,
पर, अपूर्व है सारे संवेग।
स्तब्ध रजनी सा शांत चितवन,
मानसरोवर सा एकांत प्रेमिमन
चल – अचल सब है बेकल
शशि आलोक में रोवत है एकल।
मेरु रेत सा आपका लगाव,
धधकते आग सा इसका प्रभाव।
अनुशील, अनुराग सा सुंदर स्वभाव,
सुमन – सुगंधित मनोहर भाव।
-गौतम झा