दिन नीलाम
मेरे ख्वाब के अलाव जल रहें है,
और किसी ने देखा ही नहीँ?
उसकी स्मृतियां बेशक थोड़ी सी है,
इसी में जग की मिल्कियत पिरोई हुई है।
चांदनी रात सा दिलकश नजारा,
जैसे जिन्दगी गुज़ारने का अंतिम सहारा।
धूप, बारिश, सर्दी, और तूफान
सबके सब जैसे विलायती सलाम।
बस एक शाम वो ठहर जाए
जैसे खुली छत से सुबह नज़र आए।
दिल के इसी अहद के वास्ते,
'दिन' को नीलाम रखा है।।
-गौतम झा