दिल्ली अभी दूर है
दिल्ली अभी दूर है, औलिया इसी से मशहूर है
मध्यकाल का जुमला है,केजरीवाल पर ठहरा है।।
ऊपर से सब दिखता है,नींचे क्या रुकता है?
ज़मीन चलता है औरआसमान झुकता है।।
करार हरजाई है, कई दफा आजमाई है
फिक्र जम्हाई है, नींद ही इसकी दवाई है।।
मिलना अगर मुक़द्दर है, तंगदिल क्यों मुकर्रर है?
ढंग ढंग के लोग हैं, बेढंग सारे रोग हैं।।
गुमान में मान कहाँ, सरहद पर आराम कहाँ
जब दिन मलीन हो, कैसे तकदीर बेहतरीन हो?
धरती पर यकीन है, किस्सा ये हसीन है
दुविधा में वक़ार है,सुविधाओं में प्रकार हैं।।
सरल स्वभाव हो, आर्थिक अभाव हो
बात कुछ भी हो, तुम सबसे बेकार हो।।
उड़ता पंजाब हो, निखरता बिहार हो या दिल्ली का सरकार हो
सबका एक ही राज़ है, शराब से होता सारा कामकाज़ है।।
मणिपुर की अपनी महिमा है, सरकार भी गरिमा में है
रक्तरंजीत आंगन-अखबार है, फलाना ठिकाना से गरम बाज़ार है।।
गौतम झा