चाँद में गड्ढा

चाँद में गड्ढा

चाँद में गड्ढा

रजनी के चाँद की धरा को देखा.
पाया उजालों के शहर में भी अंधेरा का गड्ढा।
आलोक के वृक्ष के पार्श्व में, सांवली सी खाई दिखती है।


सुना है! उजले-उजले रोशनी की पोशाक में लिपटी,
एक उदास, अकेला और अनाथ बुढिया बैठी है।


वो चांदनी के धागे से बुनाई करती है,
आकाशगंगा के समस्त सितारें,
यहीं आकर अपनी जरूरत की सिलाई करातें हैं।


फलस्वरूप, कुछ-कुछ अंधेरें की पट्टियां बनी,
उजाले के साम्राज्य  के पोशाकों की सजावटों में।


व्यापार को कहाँ सरोकार आती है,
और सरकार को यही भाती है।

-गौतम झा

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