भ्रमजाल
हजार बोतलों का हिसाब, तुम्हारे नज़रों के धार में है।
खुल्द बेहाल है, तुम्हारे जमाल के मिशाल पर सवाल है।
एक पल का कहर अगर इधर हो जाए,
एक सदी का लुफ्त सिमटकर बसर हो जाए।
अब जाना कि आदम कैसे गुनाहगार हुआ,
तेरे लम्स का जादू था कि वो बेकरार हुआ।
तू मुमकिन हो, ऐसा मेरे भ्रम का ख्वाब है,
जैसे चांदनी रात में गुलाब के टहनी पर खड़ा ताज है।
गौतम झा
Leena
7 months agoWow! Well written!