भवसागर का तट: गुरु कृपा और राम भक्ति

भवसागर का तट: गुरु कृपा और राम भक्ति

गुरु कृपा और राम भक्ति

वाणी की आदिम धारा में छुपा है सृष्टि का रहस्य,
अक्षर-अक्षर है ज्योति, स्वर-संगीत है ब्रह्म का स्पर्श।
जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं, वहाँ भी वह गूँजता है,
बिना उसके कोई साधक, सिद्धि का पथ सूझता है।

गणपति का वंदन करूँ, जो विघ्नों के हरने वाले हैं,
जिनकी करुणा से मुग्ध मन, सत्य मार्ग पर चले हैं।
गुरु की छाया में खिलता है जीवन का हर एक फूल,
उनके बिना जग सागर है, जैसे रात बिना चाँद और ध्रुव।

बुद्धि के चंद्रमा की शीतलता से जब मन भीगता है,
तब ही तम के भीतर का अंधकार क्षणभर में मिटता है।
शत्रुरूप अज्ञान जहाँ गुरु का तेज प्रकट होता है,
वहाँ साधक का हर संशय पल में धूल समेट लेता है।

राम! तुम्हारा नाम अमृत, जो हर कण में रस बरसाता है,
सीता संग तुम्हारी छवि, हृदय में दीप जलाता है।
तुम्हारे गुणगान से ही सब दोष विलीन हो जाते हैं,
भवसागर में डूबे जीव तट पर सुख से जाते हैं।

तुम वह शाश्वत प्रकाश हो, जो ऋषियों की वाणी में गूँजे,
तुम्हारा स्मरण कर अंधकार भी अपना पथ भूले।
तुम ही हो तप का सार, यज्ञ का फल, भक्ति का आधार,
तुम्हारे बिना जगत अधूरा, जीवन केवल एक भार।

जग का हर रज, हर कण, तुम्हारे ही गुण गाता है,
सूर्य-चंद्र की लय में भी, तुम्हारा ही स्वर बसता है।
देव-असुर सब झुकते हैं, तुम्हारी महिमा पाकर,
हरि, तुम्हारी चरण शरण से ही मिलती है मुक्ति अमर।

गुरु का वंदन, राम का स्मरण, यही जीवन का सार,
यही धर्म की शाश्वत धारा, यही सृष्टि का व्यवहार।
तुलसी के मन की वाणी, यही भाव हमें सिखाती है,
रामनाम ही जग का आश्रय, यही राह मुक्तिपथ दिखाती है।

 -गौतम झा

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