
भाई दूज
दीयों की लौ में मुस्कान झलके,
भाई दूज फिर आ ही गई।
राखी के धागे का वचन निभाने,
बहना तिलक सजा ही गई।
माथे पर रोली, चावल की बिंदिया,
थाली में दीपक का उजियारा।
दूरी चाहे कितनी हो जग में,
बंधन रहे अमर, यह प्यारा।
भाई का वादा, बहना का विश्वास,
जैसे गंगा का पावन प्रवाह।
न कोई तोल सके यह नाता,
न कोई माप सके यह भाव।
कभी झगड़ा, कभी नोक-झोंक,
फिर भी मन में छिपा अपनापन।
हर जन्म मिले तू मेरी बहना,
यही मन का अनकहा वचन।
दीपों की रोशनी संग कहे जग,
“यह रिश्ता है सबसे सच्चा।”
भाई दूज की शुभ बेला में,
खिल उठे हर मन, हर चेहरा।
-गुंजा झा