
बालक राम
कठिन शिवधनुष विसुरति, जग की मायाजाल,
अडिग खड़े राम-शिशु, न झुके, न किए मलाल।
जन्मभूमि के क्रीड़ा-क्षेत्र में, प्रकट धर्म का प्रकाश,
सत्य-साहस-वीरता से, मुखरित होता हर श्वास।
मोह-माया की आँधियाँ आयीं, पर मन न कुम्हलाया,
भक्ति-निर्झर से सिंचित, रामकिशोर निराला छाया।
बाएँ कर के कंपन में, शक्ति का अद्भुत स्वरूप,
हर कृत्य और हर संकल्प में, झलक रहा प्रभु का रूप।
बाल्य सरलता की आड़ में, गहन संदेश छिपा,
धर्म-मार्ग का आलोक, कठिनाईयों में भी दीप जला।
शक्तिशाली करों से लहराए, न्याय का अमोघ बाण,
अधर्म-विध्वंस को सदा तत्पर, वह दिव्य बाल महान।
संकट-संघर्ष प्रबल हुए, पर राम न डिगे, न हारे,
सत्य-ज्योति प्रज्वलित कर, तम हरते पुनः-पुनः सारे।
बाल्य रूप में ही दीख पड़ा, पराक्रम और विवेक,
सत्य-भक्ति-साहस मिलकर, रचते गुणों का एक।
हे साधक! निहारो बालराम, आदर्श ज्योति अनूप,
धैर्य रखो कठिन समय में, बनो जीवन के स्वरूप।
शक्ति, करुणा, धर्म-विवेक—यही जीवन का सार,
राम की बाल लीलाओं में, निहित सृष्टि का आधार।
-गौतम झा