सर्दी की धूप
सर्दी की धूप का गुनगुना गुच्छा आँगन में बिछने लगा है
सहमे-सहमें पत्तों में सृजन का गहरा सोच जागने लगा है।
ग्रीष्म के प्रकाश पुंज ने पेड़ों को बहुत सताया है
सर्दी की धूप ने छाँव की साँवली चादर बनाया है।
आयी मॉनसून, लौटते हुए भी बरसकर चली गयी
फिर के आस में, बादल ओस से लिपटकर रोने लगी।
आँगन और छत से कार्तिक के चाँद को इतना देखा
कि ईर्ष्या में सूरज भी देने लगा चांदनी का धोखा।
जैसे ही सर्द हवा की सरसरी खबर चलने लगी
संदूक से सूरज की मलमल सी गर्माहट निकलने लगी।
बाजरे, मक्के, साग, पुदीना, गुड़, इत्यादि
चटाई पर आलती-पालथी और कपालभाति।
खुश्क मौसम का आलसपन और ऐसे में सूर्य का मँहगा आचरण
जैसे शिक्षा का दमन और बेरोजगारी पर सरकार का अल्हड़पन।
गौतम झा