दीवाली में रेल यात्रा

दीवाली में रेल यात्रा

दीवाली में रेल यात्रा

पटरी पे रेंगती रेल थकी-सी,
कचरे में लिपटी, घुटी-सी रुकी-सी।
घंटों की देर, अव्यवस्था भारी,
हर मुसाफ़िर ने उम्मीद हारी।

सत्तर की जगह, दो सौ सवार,
खड़े हैं सब, दिखे दरवाज़ा पार।
टिकट वाला सोच में खोया,
सीट मिले तो भाग्य संजोया।

सिंक में पान का नक्शा लाल,
दीवारों पर लिखा ग़ज़ब कमाल।
बाथरूम के पास ताश की गूँज,
किसे परवाह इस रेल की धूँध।

खिड़की से आती धूल की आँधी,
ठंडा पानी? बस कहानी प्यारी।
चादर नई है, दिखावे की बात,
बाक़ी सब टूटा, छिपी जर्जर सौगात।

रेल है हमारी, पर हाल पराये,
हर सफ़र में शिकवे ही गाये।
फिर भी दिल में एक आस पलती,
कभी तो ये रेल भी शान से चलती।

 -गौतम झा

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