राधा-श्याम
सागर मंथन की मोहिनी,
अमृत कलश की संगिनी,
भव भावों भरी रागिनी,
वर्तिका की उजयारी सी दामिनी।।
राधा की नैसर्गिक काया,
श्याम के मन को ऐसा भाया,
फिर, प्रेम की क्या माया?
जिसमें अनंत, अविरल, अनुराग है छाया।।
स्नेह की इस गागर को,
श्याम-सुंदर अपने सागर में,
रच-रच है रास रचाया
मुट्ठी बंद जुगनू सा दास बनाया।।
कथा का अंत है विकल,
रह जाते दोनों बस वेकल,
राधा का संदेश क्या है?
श्याम का उपदेश क्या है?
युगों की अभिलाषा है राधा
तृष्णा की भाषा है राधा
आलस मन की भोर है राधा
संगीत लय की गठजोड़ है राधा।।
सुख की क्या सीमा है?
इच्छा की कोई बीमा है?
अधुरा आस ही परिणय है,
संपूर्णता में कहाँ अनुनय या विनय है।।
गौतम झा
Gunja
3 months ago❣️👌🙏
Chiku
3 months agobahut sunder