
वेदों की ज्योति
अनादि काल की गूँज है वेद,
जहाँ ऋषियों ने सुनी थी चेतना की ध्वनि।
स्वरूप था ज्ञान का उज्ज्वल दीप,
जो अंधकार से लड़ता रहा सदा।
ऋग्वेद का नाद है अग्नि की लौ,
यज्ञ की ज्वाला, सत्य का स्वर।
सामवेद है संगीत की धारा,
जहाँ सुरों में गूँजता ब्रह्म का गीत।
यजुर्वेद है कर्म की शिक्षा,
अनुष्ठान और धर्म का पथ।
अथर्ववेद है जीवन का रहस्य,
औषधि, मंत्र और रक्षा का सत्यम्।
वेद कहते हैं – एकं सत्, विप्रा बहुधा वदन्ति,
सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक रूपों में पुकारते।
यही है उनकी अमर पुकार,
कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं।
वेद हैं श्वास जैसे भारत के,
मनुष्य के भीतर की दिव्यता का घोष।
जो सुन ले इनके मन्त्रों की गहराई,
वह पा ले भीतर शिव का बोध।
-गौतम झा