वैशाली : अनन्त गाथा

वैशाली : अनन्त गाथा

वैशाली 

वैशालीजहाँ धरती पर इतिहास मुस्कुराता है,
गंगा की पावन धारा से नहाकर,
माटी का हर कण सौंधी गीत सुनाता है।

यह वही भूमि है
जहाँ लिच्छवियों ने गणराज्य का दीप जलाया,
स्वतंत्रता का स्वर यहाँ सबसे पहले गूंजा।
जनसभा की ध्वनि से गगन थरथराया,
लोकतंत्र का बीज यहीं अंकुरित हुआ।

आम्रपाली की अनुपम छवि यहाँ खड़ी है,
सौंदर्य में करुणा और करुणा में दृढ़ता गड़ी है।
उसकी नृत्य-धारा में शहर झूमता रहा,
इतिहास उसके नाम से चिरंजीवी होता रहा।

आम के बागों से सुगंधित यह नगर,
जहाँ वसंत हर आंगन में गाता है प्रहर।
सरसों के खेत पीले आभा में झूमते हैं,
धान की बालियाँ शांति का संगीत बुनते हैं।

बुद्ध का करुणामय उपदेश यहाँ बहा,
महावीर का तपस्वी मार्ग यहाँ खिला।
आस्था के दीपक हर युग में जले,
और आज भी यह भूमि शांति की गाथा कहती चले।

अशोक के स्तम्भ अब भी प्रहरी की तरह खड़े हैं,
पत्थरों में उकेरी अमरता की कथा गढ़े हैं।
स्मृतियाँ संजोए हर ईंट, हर दीवार,
जैसे अतीत की प्रतिध्वनि आज का पुकार।

वैशाली सिर्फ नगर नहीं
यह संस्कृति का उज्ज्वल दर्पण है,
धरती की धड़कन में रचा-बसा अमर स्पंदन है।
इतिहास, धर्म और लोक की अनन्त परम्परा,
भारत के गौरव का अनुपम प्रकाश।

 -गौतम झा

Newsletter

Enter Name
Enter Email
Server Error!
Thank you for subscription.

Leave a Comment