
शिवरात्रि की वंदना
भू पर छाया तम गहन, नभ में गूँजे रुद्र-गान,
कैलाश-पथ से आज फिर, आया शिव का दिव्य ज्ञान।
गंग धार झर-झर बहे, जटा में बहता काल-स्रोत,
नटराज के नाद से काँपे, यह सारा जग, यह लोक।
भस्म विभूषित अंग श्याम, कर में त्रिशूल प्रचंड,
संहार कर तम-पाश को, करें सृजन अनंत।
बेल-पत्र, जल, अक्षत चढ़े, गूँजे हर-हर का गान,
शिवमय हो यह चेतना, जागे हर हृदय में प्राण।
रुद्र-तांडव, योगी-ध्यान, शिव में लय है ब्रह्म का गान,
शिवरात्रि यह चेतन कर दे, मिट जाए हर संशय-भ्रमजाल।
गौतम झा
Pk
27 days agoहर हर महादेव....