हम किस दिशा में चल रहे ?

हम किस दिशा में चल रहे ?

 

बदल रही धरती की छटा,

अम्बर में धुंआ धुंआ बा-दल रहे,

मध्य रख सीएए, पक्ष-विपक्ष जल रहे,

कोई बाताये - हम किस दिशा में चल रहे !

 

आगजनी, खून, खराबा,

पत्थरबाजी, शोर, शराबा,

इंसान के बाहर निकल रहे,

कोई बाताये - हम किस दिशा में चल रहे !

 

ये तबाही का मंज़र और जलते दूकान-घर,

कराहती इंसानियत को कोई तो सुने मगर,

नम आँखों में सपने भी हरदम सजल रहे,

कोई बाताये - हम किस दिशा में चल रहे !

 

पंद्रह मिनट और पंद्रह करोड़ वाली बात,

धीरे धीरे कर रही और स्याह रात,

बाज़ नहीं आते वो रह रह आग उगल रहे,

कोई बाताये - हम किस दिशा में चल रहे !

-कवि कुमार 'प्रचंड'

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